28 फ़रवरी 2017 को संत श्री रामकृष्ण परमहंस की 181वीं जयंती है। रामकृष्ण जी एक महान सन्त, महापुरुष और मानवता के सच्चे पुजारी थे। वे सभी धर्मों को एक मानते थे और सदैव धर्म की एकता पर ही बल देते थे। उनका जन्म सन् 1836 में पश्चिम बंगाल के हुगली ज़िले के कामारपुकुर गाँव में एक ब्राहमण परिवार में हुआ था। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रति वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वित्तीया तिथि को ‘श्री रामकृष्ण जयंती’ मनाई जाती है।
रामकृष्ण परमहंस जी ने 17 वर्ष की आयु में ही पारिवारिक जीवन का त्याग कर दिया था। वे कलकत्ता में दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी भी रहे। वे अपने अनुयायियों के मध्य ‘श्री रामकृष्ण परमहंस’ के नाम से विख्यात हैं। रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्यों में ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद, बंकिमचंद्र चटर्जी तथा अश्विनी कुमार दत्त जैसे महान पुरुष भी सम्मिलित हैं। उनके सम्मान में स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मठ की स्थापना की, जो मानुष कल्याण एवं आध्यात्मिक विकास के लिए पूरे विश्व में काम करता है। ‘रामकृष्ण मठ और मिशन’ नामक यह संस्था बेलूर मठ द्वारा संचालित है और रामकृष्ण आंदोलन के रूप में आध्यात्मिक ज्ञान का विश्व में प्रचार-प्रसार करती है। इसका मुख्यालय बेलूर मठ है।
रामकृष्ण परमहंस जी का मानना था कि “जब तक मनुष्य के हृदय में द्वेष भावना तथा पक्षपात की भावना रहेगी तब तक मनुष्य को परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती।” उनके अनुसार, “सच्चा धर्म मानव धर्म है तथा जो व्यक्ति मानवीय मूल्यों की सेवा करते हैं। वे ही सच्चे धार्मिक पुरुष बनते हैं।” उनके इन मानवतावादी विचारों के कारण ही वे आज देश-विदेश में एक सिद्ध पुरुष के रूप में जाने जाते हैं।